On this day, 10 years
ago, I began my stint in Pune. Oscillating between home-sickness and love-hate
relationship with this city, my language, my food habits, my likes have
transformed. I have transformed. This poem lists snippets of my journey...
------------छोले कुलचे को miss करते हुए, पाव भाजी की plate निपटाता है.
5 star hotels की लड़ियाँ लगी है, फिर भी Goodluck Cafe ही जाता है.
समोसा हो, कीमा हो, या हो omelette... सब कुछ पाव के साथ खाता है.
आलू जिसका favorite हुआ करता था कभी, आजकल वह बटाटे से इश्क़ लड़ाता है.
प्याज़ पकोड़े को चाय के साथ खाने वाला, बारिश में कांदा भज्जी नौश फरमाता है.
कूड़े को plastic में बांधके फेंकता था जो, गीला कचरा सूखे से अलग हटाता है.
Sweaters और muffler तो लाया था संग अपने. साल में एक बार उन्हें धुप लगाता है.
"पहले यहाँ भी काफी सर्दी पढ़ती थी," बोलके अपने leather jacket को सहलाता है.
Truck में लादकर अपनी Bullet लाया था इस शहर में, weekends को Royal Enfield चलाता है.
पहले भी बेझिझक जीता था वो, लेकिन अब बिंदास ज़िन्दगी बिताता है.
Sus Road को अपना address बताने से शर्माने वाला, हस्सके अपने Bhosari का पता लिखवाता है.
कहता था सबको, "भाई से पंगा मत लेना." अब भाई दूसरो के लफड़े सुलझाता है.
कबाड़ी वाले से मिलके अरसा हो गया, क्यूंकि रद्दी वाला पुराने paper उठाता है.
हर महीने Goa का plan बनाके, weekend Mahabaleshwar में बिताता है.
"जहाँ beer मिले, वही जगह है Goa," ये सोचके खुद का पीठ थपथपाता है.
जब बड़े शहर की शोर-गुल miss करे, तब Bombay की तरफ कदम बढ़ाता है.
और जब this शोर-गुल gets to his nerves, shutter down करके दोपहर को सो जाता है.
दिल्ली का लौंडा हुआ करता था कभी, आज शान से पुणेरी कहलाता है.
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