Monday, December 2, 2024

आज फिर मेरे शहर में आया हूं

सालों बाद आज फिर मेरे शहर में आया हूं,

अपने साथ कई पुरानी यादें लाया हूं।
स्कूल की दीवारें चमक रही है, इमारत पहले से बड़ी है,
जहां साइकिल स्टैंड थी वहां आज बसें खड़ी है।
स्कूल का गेट वही है, बस उसमें थोड़ा जंग देख पाया हूं,
सालों बाद आज फिर मेरे शहर में आया हूं।

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वो खुला मैदान जिसमे पापा ने साइकिल चलाना सिखाया था,
मालूम है मुझे, जान बूझकर उन्होंने मुझे गिराया था।
मां ने डांटा था उन्हें मेरे चोट पे मलहम लगाते हुए,
लेकिन दुनिया से लड़ने के लिए तैयार उन्होंने ही मुझे बनाया था।
चलते चलते पुराने घर के चौखट से टकराया हूं,
सालों बाद आज फिर मेरे शहर में आया हूं।

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दोस्त कभी न छूटेंगे इस गलत फहमी में रहते थे,
किसी भी खेल में एक दूसरे से हार हम न सहते थे।
वही दोस्त आज सिर्फ वॉट्सएप ग्रुप में मिलते है,
अपनी अपनी जिंदगी की उलझने अकेले ही सुलझाते है।
जाने पहचाने शहर में सिर्फ अंजान चेहरे ही देख पाया हूं,
सालों बाद आज फिर मेरे शहर में आया हूं।

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पार्क का वो बेंच टूट गया जहां शामें मेरे साथ बिताती थी,
याद है क्या तुम्हें, तुम मुझको कितना सताती थी?
जामुन का पेड़ वहीं है जिससे तोते बीज गिराते थे,
मेरी कमीज़ से तुम वो जमुनी दाग मिटाती थी।
तुम्हारे लिए शायद मैं बीते दिनों का आज बस एक साया हूं,
सालों बाद आज फिर मेरे शहर में आया हूं।

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शहर शायद इतना बदला सा न लगता, अगर लोग पुराने होते,
उन लम्हों को फिर जी पाते तो यादें नई पिरोते।
फ़िलहाल मेरे बचपन के गलियों में फिर से समाया हूं,
सालों बाद आज फिर मेरे शहर में आया हूं।

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