सड़को पर गिरे सूखे फूल और पत्ते अब बिखरते नहीं है,
खिड़की पे बैठे परिंदे अब किसी से डरते नहीं है,
मंदिर की आरती, मस्जिद की अज़ान अब गूंजा करते नहीं है,
घरों के ऊपर से हवाई-जहाज़ भी अब गुज़रते नहीं है,
किसी का पेट भरने के लिए मुर्गियां अब मरते नहीं है,
शायद मेरे शहर में अब लोग बसते नहीं है।
काम छोड़के अपने बच्चों के साथ लूडो और सांप-सीढ़ी खेलते है,
Video call से हर रोज़, जी हाँ हर रोज़, माँ-बाप की खबर लेते है,
Building के चौकीदार को, दूर से ही सही, "रोटी खा ली?" पूछते है,
पड़ोसियों को कम पड़ जाये तो घर का दूध, सब्ज़ी बांटते है,
अपने जमा पूंजी का गुल्लक Doctors Welfare Fund में डालते है,
शायद मेरे शहर में अब इंसान बसते है।
#coronavirus
खिड़की पे बैठे परिंदे अब किसी से डरते नहीं है,
मंदिर की आरती, मस्जिद की अज़ान अब गूंजा करते नहीं है,
घरों के ऊपर से हवाई-जहाज़ भी अब गुज़रते नहीं है,
किसी का पेट भरने के लिए मुर्गियां अब मरते नहीं है,
शायद मेरे शहर में अब लोग बसते नहीं है।
काम छोड़के अपने बच्चों के साथ लूडो और सांप-सीढ़ी खेलते है,
Video call से हर रोज़, जी हाँ हर रोज़, माँ-बाप की खबर लेते है,
Building के चौकीदार को, दूर से ही सही, "रोटी खा ली?" पूछते है,
पड़ोसियों को कम पड़ जाये तो घर का दूध, सब्ज़ी बांटते है,
अपने जमा पूंजी का गुल्लक Doctors Welfare Fund में डालते है,
शायद मेरे शहर में अब इंसान बसते है।
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