कुछ शामें बचाके रखीं थी, यारों के साथ पीने के लिए...
काफी पैसे कमाके रखें थे, बाद में आराम से जीने के लिए... 
जाने कब मेरी ज़िन्दगी से निकल गयीं, वो बचाई हुई हर एक शाम।
यार दोस्त भी ग़ुम हुए, पीछे रह गए सिर्फ पैसे और जाम।
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कॉलेज-टाइम की वो रातें याद है यारों...
जब होता था कमरा खचाकच भरा और बोतलें खाली।
आज भी हर रात को महफ़िल जमती है मेरे घर में... 
बोतलें तो भरी हुई है, पर आज कमरा  है खाली।
